Tuesday, October 13, 2009

व्यंग्य : आंखों का पानी मरना !!!!!!!!!!!

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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

लो जी अब जाकर आखिर हमारे दिल को चैन आ ही गया। सिद्ध हो गया कि चन्द्रमा पर पानी मौजूद है। सोचो अगर वहां पानी नहीं मिलता तो क्या होता। आईये अब जरा इस बात तो अपने तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। एक पुरानी कहावत है “आंखों का पानी मरना या ढलना” जिसका मतलब है किसी की मर्यादा का ध्यान या लज्जाशीलता न रह जाना। निर्लज्ज हो जाना। जैसे-जब आँख का पानी ढल गया तब नंगे होकर नाच भी सकते हो।
अब यह किसी से छुपा तो है नहीं कि आज हमारे देश का क्या हाल है। सरकार तो धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांध नेत्रहीन बनकर बैठी है। घाटे में चल रही कम्पनी में भी लोगों को भर भर कर बोनस दिया जा रहा है. सी.ई.ओ. के वेतनमान और हमारी गरीब जनता के बीच में एक अजीब सा तारतम्य है। दोनों की संख्या करोड़ो में है। एयरलाईंस के पायलटों को मिलने वाला १०-१५ लाख महीने वेतन समझ से परे है, उस पर उनका बार बार हड़्ताल पर जाना सर्वथा अनुचित है। सरकार के लिये यह एक अपमान का विषय है कि घाटे में चल रहे संस्थानों में किस तरह लाखों रुपयों का परफ़ोरमैन्स बोनस दिया या लिया जा सकता है।
आओ अब गंगा नदी की सफ़ाई से जुड़ी सफ़ाई की गहराई में जाकर देखते हैं कि सरकार की आंखों का पानी मरा कि नहीं। करोड़ो रुपये सरकार पहले ही सफ़ाई पर लुटा चुकी है। सरकार को खुद नहीं पता कि वो रुपये आखिर गये कहां ? पिछले १० सालों में सरकार १५०० करोड़ रुपये गंगा सफ़ाई अभियान के तहत खर्च कर चुकी है। अब वर्ल्ड-बैंक गंगा की सफ़ाई के लिये भारत को १५००० करोड़ रुपये की सहायता दे रहा है। सरकार में उपर से नीचे तक सभी अधिकारी अभी से इन करोड़ों रुपयों को साफ़ करने की योजना बना रहे होंगे। अब देखना यह है कि इस बार भी सिर्फ़ रुपये साफ़ होते हैं य़ा गंगा भी। सुप्रीम कोर्ट ने २००७ में एक कमेटी बनायी इस सफ़ाई की जांच के लिये, पता नहीं उस जांच का क्या हुआ।
सरकार एक तरफ़ स्विस बैंक में छुपे काले धन को वापस लाना चाहती है तो दूसरी तरफ़ यह करोड़ों रुपये की योजनाओं पर आंख बंद कर धन प्रदान कर काले धन को बढ़ावा भी देती है। काम हुआ या नहीं यह देखना सरकार का काम नहीं। हर साल दिल्ली और मुंबई में ही करोड़ों रुपयों से नालों की सफ़ाई, सड़्को के रखरखाव पर खर्च किये जाते है, वो बात अलग है कि समस्या वहीं की वहीं रहती है। तो सवाल यह है कि आखिर यह करोड़ों रुपया जा कहां रहा है ?
राहुल गांधी का यह कहना कि कांग्रेस की नीति “गरीबों की सेवा” ही कांग्रेस की जीत का मूलमंत्र है और हमेशा रहेगा। मेरी समझ या नासमझी में इसका एक ही मतलब निकलता है, और वो है कि “जब तक भारत में गरीबी है, तब तक कांग्रेस की जीत पक्की है”। अगर भारत का चीन, जापान की तरह विकास हो गया, सब पढ़ लिख लिये तो कोई गरीब नहीं रहेगा। फ़िर कांग्रेस क्या करेगी ?
इन सब बातों को देखकर यही लगता है कि देश में सभी की आंखों का पानी मर गया है। हम धरती के पानी की तो कद्र कर नहीं सके, चन्द्रमा के पानी का जाने क्या करेंगे। अब भी वक्त है कि हम देश की खातिर संसाधनों का दुरुपयोग न करें वरना वो दिन दूर नहीं कि हमें स्वस्थ हवा, पानी वगैरह नसीब न हो। अगर हम धरती पर अपने लिये स्वस्थ हवा, पानी बचा सके तो यह हमारे लिये किसी विश्व विजय से कम न होगा। चंद्रमा और मंगल पर जीवन अभी एक कल्पना भर है, परन्तु धरती का विनाश हमारे कारण अब काफ़ी करीब नजर आने लगा है।