Sunday, June 6, 2010
नज्म : अंजाम
न कोई खत, न कोई खबर
मिलता रहा हूँ उनसे, खुद से बेखबर |
किसे दूं आवाज, किसको बुलाऊँ मैं पास
चाहत के पैमाने में, शब्द हुए बेअसर |
इन वादियों में तुझको, मै ढूंढ़ रहा
छुपा के दिल में, किसी को बेनजर |
ख्वाबों की इबाद्त तो, की थी हमने
अब खुदा का नाम लूं, या पुकारूं ईश्वर |
न कोई गम, न शिकवा ए मंजर
चाहतों को उसने, यही अंजाम दिया अक्सर |
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बढ़िया है.
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई