Sunday, June 6, 2010
कविता : ख्वाब
सोचता हूँ वो इंतज़ार करती होगी,
अपने आप से बातें दो चार करती होगी ।
छुप छुप कर अकेले में अपने रूप को,
आईने में निहारती सवाँरती हर शाम होगी ॥
दिल की धड़कन उसकी मेरी गुलाम होगी,
खवाब से मेरे हर रात वो परेशान होगी ।
मिलन का ख्वाब भोर में देखकर,
सखियों से शरमाकर वो लाल होगी ॥
तमाम रातें वो मेरे नाम करती होगी,
या खुदा मुझे बदनाम करती होगी ।
सोच रहा हूँ मीलों दूर बैठा में,
मुझ पर वो सौ सौ बार मरती होगी ॥
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बहुत बढ़िया!
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
http://guftgun.blogspot.com/
प्रिय दीपक ,
ReplyDeleteआपकी कविता अच्छी लगी पर एक बात हैं जो काफी संवेदनशील लगी कि मैं पहली बार आया आपके ब्लॉग पर आपकी रचना और ब्लॉग पता नहीं क्यों बिलकुल ऐसे लगे जैसे मेरे ब्लॉग के . आप खुद चेक करे एक बार कृपया . मैंने लगभग बीस कविता लिखी हैं . तेरह भाग सिर्फ प्रेम के हैं जो आपकी आज कि इस रचना से भी थोड़े थोड़े मेल खाते हैं . पहली बार आया और कुछ भी नया सा नहीं लगा ऐसा लगा कि genre को जैसे पहले से ही जी रहा हूँ अपनी जिंदगी में . मुझे जो प्यार हुआ था मेरी तो सारी कविताये उसी भाव में लिखी गयी .
आपका परिचय भी आपके प्रोफाइल में ज्यादा नहीं हैं , कुछ तो इ मेल करे . मैं एक सह प्रबंधक ( इंजीनियरिंग क्षेत्र ) हूँ . वैसे बी.टेक और एम् बी ऐ हूँ . फिर भी पता नहीं क्यों साहित्य से लगाव हो गया .
--
!! श्री हरि : !!
बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
Email:virender.zte@gmail.com
Blog:saralkumar.blogspot.com
bahut khoob "abhimanyu" nice writting, panktiyan dil tak utarane kee saree khoobee rakhatee hain
ReplyDeletekeep it up
all the best