Sunday, June 6, 2010

नज्म : जिंन्दगी का सफ़र

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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी



तेरा प्यार मेरे लिये, खुदा हो गया ।
क्या था मैं कल, आज क्या हो गया ॥

नफ़रत की दुनिया, मतलब के रिश्ते ।
मुहब्बत का दामन, फिर जुदा हो गया ॥

महफिलें ये अब तो, सजती नहीं हैं ।
यारों की दुनिया में, बदनाम हो गया ॥

तन्हा जिन्दगी का सफ़र, कटता नहीं होगा ।
लुट लुट कर जीना, आसन हो गया ॥

खुद को जला, अभिमन्यु शमा बन गया ।
राख के ढेरों पर आज, हिमालय खडा़ हो गया ॥

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