Friday, July 2, 2010

हमारे अपने एन्डरसन : बिना खोजे मिलें हजार (भाग १)

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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


आज पूरा हिन्दुस्तान भोपाल गैस त्रासदी और एन्डरसन से संबन्धित खबरों से भरा पड़ा है । जगह जगह धरना, भोपाल गैस पीड़ितों के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं । अखबार और न्यूज चैनल खबरों से अटे पड़े हैं । इसी को लेकर मेरे मन में एक विचार आता है कि इस बात की समीक्षा जरूर की जाए कि विरोध किस बात पर ज्यादा है ?

एन्डरसन को आसानी से भारत से बाहर जाने देने के लिये..., या गैस पीड़ितों को मिले मामूली से मुआवजे के लिये......, या इसलिये कि 25 साल में इंसाफ़ नहीं हो पाया है......., या इसलिये कि अब तक किसी एक भी गुनहगार को सज़ा नहीं हुई है....., या इसलिये कि आगे भी शायद किसी को सजा हो न हो.....।

अगर हम २५ साल पीछे जाकर प्रष्टभूमि में झांके तो तब से अब तक हम भोपाल गैस पीड़ितों के नाम से शायद 25 हज़ार भारतीयों को खो चुके हैं । अनुमानित बाक़ी बचे पाँच लाख इंसान अभी भी अपनी जिंन्दगी से जूझते हुए किसी तरह बस बिना किसी उम्मीद में जिए जा रहे हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि अगर एन्डरसन को सजा मिल जाती तो क्या ....? अगर गैस पीड़ितों को २०-३० लाख मुआवजा मिल जाता तो क्या ........? १००-५० लोगों को सजा मिल जाती तो क्या ........ ? बाक़ी बचे पाँच लाख इंसानों को जिंदगी भर के लिये मुफ़्त इलाज मिल जाता तो क्या ...........?

तो क्या हम इस त्रासदी को भूल जाते...... ?

क्या यह त्रासदी, त्रासदी नहीं रहती ....?

शायद नहीं..... कभी नहीं । लेकिन क्यों ?????

क्रमश:……….