Sunday, August 15, 2010

कविता - आजाद भारत बनो !

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तुम बहते जल की तरह बनो,
सन्मार्ग का पथ बतलाओ ॥
तुम हवा की तरह बहो,
शांति का दीप जलाओ ॥
तुम सूर्य की तरह चमको,
नवचेतना का प्रकाश फैलाओ ॥

तुम पुष्प की सुगन्ध बनो,
जग में विसरित हो जाओ ॥
तुम लहरों की तरह बहो,
किनारों को छूकर आओ ॥
तुम बादल की तरह गरजो,
ज्ञान की बूंदे बरसाओ ॥

तुम आजाद भारत बनो,
लोकतंत्र को मजबूत बनाओ ॥
तुम चंद्र्मा की तरह मुसकाओ,
शीतलता का पाठ पढाओ ॥
तुम अभिमन्यु की तरह बनो,
चक्र्व्यूह सभी आज तोड़ आओ ॥

Friday, July 2, 2010

हमारे अपने एन्डरसन : बिना खोजे मिलें हजार (भाग १)

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आज पूरा हिन्दुस्तान भोपाल गैस त्रासदी और एन्डरसन से संबन्धित खबरों से भरा पड़ा है । जगह जगह धरना, भोपाल गैस पीड़ितों के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं । अखबार और न्यूज चैनल खबरों से अटे पड़े हैं । इसी को लेकर मेरे मन में एक विचार आता है कि इस बात की समीक्षा जरूर की जाए कि विरोध किस बात पर ज्यादा है ?

एन्डरसन को आसानी से भारत से बाहर जाने देने के लिये..., या गैस पीड़ितों को मिले मामूली से मुआवजे के लिये......, या इसलिये कि 25 साल में इंसाफ़ नहीं हो पाया है......., या इसलिये कि अब तक किसी एक भी गुनहगार को सज़ा नहीं हुई है....., या इसलिये कि आगे भी शायद किसी को सजा हो न हो.....।

अगर हम २५ साल पीछे जाकर प्रष्टभूमि में झांके तो तब से अब तक हम भोपाल गैस पीड़ितों के नाम से शायद 25 हज़ार भारतीयों को खो चुके हैं । अनुमानित बाक़ी बचे पाँच लाख इंसान अभी भी अपनी जिंन्दगी से जूझते हुए किसी तरह बस बिना किसी उम्मीद में जिए जा रहे हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि अगर एन्डरसन को सजा मिल जाती तो क्या ....? अगर गैस पीड़ितों को २०-३० लाख मुआवजा मिल जाता तो क्या ........? १००-५० लोगों को सजा मिल जाती तो क्या ........ ? बाक़ी बचे पाँच लाख इंसानों को जिंदगी भर के लिये मुफ़्त इलाज मिल जाता तो क्या ...........?

तो क्या हम इस त्रासदी को भूल जाते...... ?

क्या यह त्रासदी, त्रासदी नहीं रहती ....?

शायद नहीं..... कभी नहीं । लेकिन क्यों ?????

क्रमश:……….

Monday, June 14, 2010

नज्म : सवाल क्या है

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इस तरह फासले रखने की, वजह क्या है।
हमसे यकीन उनका, अब शायद उठ गया है ॥

ये नजरें जो नजरें किसी से, चुरा रहीं हैं आज ।
लगता है कोई और, अब तुम को मिल गया है॥

तुझे तराश कर, उसकी कल्पना भी सोचती होंगी।
तेरे हुस्न को रंग, अब दिल का दिया है ॥

झुका तो चले थे वो, आसमां अपने कदमों में ।
सितारों ने पूछा है, अब उनका हाल क्या है॥

दूर जाना हो तो जाओ, किसी से पूछो नहीं।
अनगिनत जवाबों के बीच, अब यह सवाल क्या है॥

Thursday, June 10, 2010

नज्म

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मुहब्बत एक जज्बा है, पैगाम आने भी दो ।
अगर तुम तलाश चुके, एक मौका हमें भी दो ॥

समुद्र में उठ्ती लहरें , छेड़ जाती हैं अकसर ।
खामोशी से तलाश कर, कुछ मोती हमें भी दो ।।

न होती यह मय की दुनियां, तो तुम क्या होते ।
सबक किसी से कर हांसिल, कुछ जवाब हमें भी दो॥

टूटे दिलों को भी क्या, कहीं सुकून मिलता है।
अतीत के उन पन्नों में, कुछ स्थान हमें भी दो॥

चक्रव्यूह तुम्हें इस बार, तोड्ना ही होगा अभिमन्यु।
मुहब्बत को मुकामों तक, पहुंचाने की आजादी हमें भी दो॥

नज्म : खुदा

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कब वो खुदा, एक बार इधर देखता होगा ।
शब भर कोई, सवाल यह सोचता होगा॥

अपनी हालत पर आज, दुआ करें तो किससे ।
वो भी आजकल,खुद से दुआ करता होगा ॥

हमारे आसुओं की आज, औकात क्या है ।
वो भी आजकल, छुप छुप के रोता होगा॥

तकदीर में लिखा क्या, यह पूछें किससे ।
वो भी तकदीर अपनी, आज कोसता होगा ॥

अपने कर्मों का हिसाब, अब देंगे किसे हम।
उससे भी अब कोई , हिसाब माँगता होगा॥

बेकार है अभिमन्यु अब, खुदा को ढुँढ्ना ।
वो भी आजकल, एक और खुदा ढुँढ्ता होगा॥

नज्म : वो कौन हैं

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वो कौन हैं जो कहते हैं, कि प्यार नहीं देखा है ।
झुकी झुकी नजरों से ताकते, हमने भी देखा है॥

वो कौन हैं जो कहते हैं, कि दर्द नहीं ।
सिसकियों को छुपाते, हमने भी देखा है ॥

वो कौन हैं जो कहते हैं, कि खुदा नहीं।
छुप-छुप के हाथ उठाते, हमने भी देखा है ॥

वो कौन हैं जो कहते हैं, कि गरीब नहीं ।
सुकून के लिये तड्पते, हमने भी देखा है॥

वो कौन हैं जो कहते हैं, कि कुछ भी नहीं।
शान से जीते, हमने भी देखा है॥

Sunday, June 6, 2010

नज्म : जिंन्दगी का सफ़र

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तेरा प्यार मेरे लिये, खुदा हो गया ।
क्या था मैं कल, आज क्या हो गया ॥

नफ़रत की दुनिया, मतलब के रिश्ते ।
मुहब्बत का दामन, फिर जुदा हो गया ॥

महफिलें ये अब तो, सजती नहीं हैं ।
यारों की दुनिया में, बदनाम हो गया ॥

तन्हा जिन्दगी का सफ़र, कटता नहीं होगा ।
लुट लुट कर जीना, आसन हो गया ॥

खुद को जला, अभिमन्यु शमा बन गया ।
राख के ढेरों पर आज, हिमालय खडा़ हो गया ॥

नज्म : यादें

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काम में, तमाम ज़िन्दिगी कट जाती है |
तन्हाई में उनकी याद, और उभर आती है ||

उन्होने न वफ़ा की, न बेवफ़ाई हमसे |
अपने को छुपाकर भी, परछाई नज़र आती है ||

दिल में दर्द, चेहरे पर तबस्सुम की लकीर |
किसी को पाने या खोने से, ज़िन्दगी बदल जाती है ||

बिछड्ती मंजिलों की ओर, हसरत भरी निगाहें |
कुछ न कर पाने पर, असहाय नज़र आती है ||

समय असमय, पुराने जख्मो की मीठी चुभन |
हमारी कहानी नई सी, नज़र आती है ||

प्रथम सम्मोहन की चिर स्म्रति |
तन्हाई में उनकी याद, और उभर आती है ||

कविता : ख्वाब

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रफ़्तार


सोचता हूँ वो इंतज़ार करती होगी,
अपने आप से बातें दो चार करती होगी ।
छुप छुप कर अकेले में अपने रूप को,
आईने में निहारती सवाँरती हर शाम होगी ॥

दिल की धड़कन उसकी मेरी गुलाम होगी,
खवाब से मेरे हर रात वो परेशान होगी ।
मिलन का ख्वाब भोर में देखकर,
सखियों से शरमाकर वो लाल होगी ॥

तमाम रातें वो मेरे नाम करती होगी,
या खुदा मुझे बदनाम करती होगी ।
सोच रहा हूँ मीलों दूर बैठा में,
मुझ पर वो सौ सौ बार मरती होगी ॥

नज्म : अंजाम

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न कोई खत, न कोई खबर
मिलता रहा हूँ उनसे, खुद से बेखबर |

किसे दूं आवाज, किसको बुलाऊँ मैं पास
चाहत के पैमाने में, शब्द हुए बेअसर |

इन वादियों में तुझको, मै ढूंढ़ रहा
छुपा के दिल में, किसी को बेनजर |

ख्वाबों की इबाद्त तो, की थी हमने
अब खुदा का नाम लूं, या पुकारूं ईश्वर |

न कोई गम, न शिकवा ए मंजर
चाहतों को उसने, यही अंजाम दिया अक्सर |

कविता : तुम कहो … बस एक बार…

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चलते-चलते हर राह, हर मोड पर
कभी किसी ने कुछ कहा, कुछ पूछा ।
हर बात पर, जगह जगह टोका गया
कभी नाम, तो कभी बदनाम हुआ ।
जीता रहा, बस एक इस इच्छा से
काश, कभी तुम भी कुछ कहो ।
अधिकार से कभी, कुछ पूछो
कभी तो किसी बात पर, टोक दो ।
मुझ से कोई तो, सवाल करो
कभी तो, मुझसे जवाब मांगो ।
कभी मुझे, मेरे नाम से पुकारो
मौका दो, अपने जीवन में झाँकने का ।
धकेल दो वो, बरसों से बन्द दरवाजे
आ जाने दो मुझे अंदर, ताजी हवा के साथ ।
लग जाने दो मुझे, अपने सीने से
समां लेने दो मुझे, अपनी सांसों में ।
बस कह दो एक बार, पहली और आखिरी बार
तुम मेरे थे, तुम मेरे हो ।
उन शब्दों को हमसफ़र बना, सहारे से
हम करें इन्तजार अगले जन्म तक, जन्मों जन्मों तक ।