Thursday, June 10, 2010

नज्म : खुदा

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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

कब वो खुदा, एक बार इधर देखता होगा ।
शब भर कोई, सवाल यह सोचता होगा॥

अपनी हालत पर आज, दुआ करें तो किससे ।
वो भी आजकल,खुद से दुआ करता होगा ॥

हमारे आसुओं की आज, औकात क्या है ।
वो भी आजकल, छुप छुप के रोता होगा॥

तकदीर में लिखा क्या, यह पूछें किससे ।
वो भी तकदीर अपनी, आज कोसता होगा ॥

अपने कर्मों का हिसाब, अब देंगे किसे हम।
उससे भी अब कोई , हिसाब माँगता होगा॥

बेकार है अभिमन्यु अब, खुदा को ढुँढ्ना ।
वो भी आजकल, एक और खुदा ढुँढ्ता होगा॥

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