Wednesday, September 30, 2009

कविता: मेरे घर का पता

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पूछे कोई मेरे घर का पता
उन सीमाओं में,
जिन के दोंनो ओर
मेरे अपने ही रहते हैं ।

वो उन ज़मीनों का नाम लेंगे
जहाँ मेरी गरीबी पर
परिहास किया गया था ।

वो उस मिट्टी को पुकारेंगे
जो मेरी सच्चाई
की कब्रगाह है ।

वो उन पर्वतों की ओर देखेंगे
जो कभी मानवता के आगे
शीश झुकाते थे ।

वो उस धरती पर ढूंढेगे
जो सैकड़ो बार
रक्त से नहाई है ।

वो उन धर्मों से पूछेंगे
जो कभी खुद
उनके अपने न हुऎ ।

वो उन मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों में पुकारेंगे
जहाँ मैंने सौ सौ बार
नमन किया था ।

वो उन हवाओं से पूछेंगे
जो कभी मुझको
छूकर गुज़रती थी ।

वो उन नदियों की ओर देखेंगे
जिनमें सदगुणों को अक्सर
बहा दिया जाता है ।

लेकिन मुझे विश्वास है
वो फिर भी मुझे नहीं पहचानेंगे
क्योंकि आज मैं भी
उन में से एक हूँ
उनके साथ ही खड़ा
खुद को ढूंढ रहा हूँ
जन्मों जन्मों से
कई जन्मों से ।

नज्म : मासूम ना बना कीजिये

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आप यूँ मासूम ना बना कीजिये
ख़त मिल गया जवाब तो दीजिये ।

मेरी पहली मोहब्बत है यह सनम
कुछ कमी रही अगर बता तो दीजिये ।

हल्का हल्का सा नशा मेरी आंखों में है
नींद मेरी मुझे अब लौटा तो दीजिये ।

रूठ जाना कभी और लेकिन सनम
आज ज़रा सा मुस्करा तो दीजिये ।

न हो इंतज़ार बहाना तो कीजिये
नज़र से नज़र आज मिला तो दीजिये ।

Friday, September 4, 2009

कविता : मानव अभिव्यक्ति

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अपने ही जाल में फंसा
बिलखता तड़पता
कैद पक्षी की तरह
आज़ादी खोजता |

कल्पना की उड़ाने भरता
अथाह सागर में सहारा तलाशता
रेत के घर बनाता
बिखेरता तोड़ता |

वक़्त से जूझता
स्वप्न में मुस्कराता
अपनी ही लाठी से
खुद को हांकता |

चलता, रुकता
रुक रुक कर चलता
झूठ के दर्पण में
सच की परछाई खोजता |

ख़ुशी को तलाशता
दिल को समझाता
मजबूर बेकसूर
ग़म का तोहफा पाता |

थक हारकर अंत में
दूर आसमान को ताकता
तन्हाई के आगोश में
चिर निद्रा में सो जाता |

Thursday, September 3, 2009

नज्म : नई दुनिया

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जब भी खुद को तन्हा पाईये ।
लंबी कतारों में खड़े हो जाईये ॥

शौक है अगर ताकत आजमाने का ।
जा पत्थरों से आज सर टकराईये ॥

आज मौसम की पहली बारिश है ।
पाप अपने भी कुछ बहा आईये ॥

खुशबू फ़ूलों की आज चुरा ली किसने ।
चाँद तारों से नया गुलिस्तां सजाइये ॥

बेकार है अभिमन्यु रोशनी की तलाश ।
अंधेरों में एक नई दुनिया बसाइये ॥