

जब भी खुद को तन्हा पाईये ।
लंबी कतारों में खड़े हो जाईये ॥
शौक है अगर ताकत आजमाने का ।
जा पत्थरों से आज सर टकराईये ॥
आज मौसम की पहली बारिश है ।
पाप अपने भी कुछ बहा आईये ॥
खुशबू फ़ूलों की आज चुरा ली किसने ।
चाँद तारों से नया गुलिस्तां सजाइये ॥
बेकार है अभिमन्यु रोशनी की तलाश ।
अंधेरों में एक नई दुनिया बसाइये ॥
सुन्दर अभिव्यक्ति........
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति........
ReplyDeleteसुंदर गजल कही है आपने।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अभिमन्यु जी,
ReplyDeleteवाकई एक उम्दा गज़ल।
-प्रत्यूष गर्ग
Wah wah
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