Tuesday, February 24, 2015


हर किसी के साथ , हादसा होता ना रहे

आवाज़ उठाओ, अब कोई यहाँ रोता ना रहे


हर मोड़ पर मेरी तलाश, अब क्यों करे कोई

किसी का किसी से, कोई वास्ता ना रहे


दूर् रहकर भी मुझ को, कैसे छू जाती हो

पास आने का जैसे, कोई रास्ता ना रहे


अन्जानो के शहर में, कोई कहाँ खोता है कभी

अच्छा है अब किसी से, कोई रिश्ता ना रहे


तोड़ दी वो कलम, जो तेरे नाम थी अभिमन्यु

किसी के मन में , अब कोई फरिश्ता ना रहे

Sunday, May 18, 2014


!!!!!!!! कैसी यह बेबसी !!!!!!!!


देख कर तुमको न जाने क्यों, यह लगता है अक्सर

शायद कुछ कहना चाहती थीं, तुम मुझसे मिलकर


नयनों की यह भाषा मुझे, क्यों न सिखायी तुमने

शायद मैं तुम को समझ पाता, हर घडी हर पहर


ना तुम्हारा कुछ कहना, और ना मेरा कुछ सुनना

न पास आ सके हम, न बन सके कभी हमसफर


बस एक खुशबू के साथ, कब तक टिकता यह रिश्ता

जो छोड गयी मजधार मैं, हमसे कई बार मिलकर


किधर कैसे और कहां तलाश करूं, कितना तलाश करूं

हर तरफ बस वही खुशबू, आज जैसे तू हो गयी अमर

Saturday, April 26, 2014

कभी ना कभी...


कुछ तो है बात वरना, आप खफा नहीं होते कभी

हर आहट मिलने पर, दरवाजे पर न आ जाते कभी


बस एक नज़र ही का तो, कमाल है तुम्हारी देखो

हम कभी किसी और पर क्या,फिदा नहीं होते कभी


बस एक बार मिलने की खातिर,उनसे देखो

बार बार यों ही घर अपना,नहीं छोड़ते कभी


लेकर मुझको बाहों में,बार बार अपनी देखो

कोई खुद ही नहीं,शरमाता अपने आप कभी


पता है दोनों थे, वक़्त से मजबूर देखो

कोई क्यों वरना,न बिछड़ने की कसमें ख़ाता कभी


रोज़ देखता हूँ तुमको जी भर, एक नज़र देखो

बाद में तुम शायद,फ़िर दिखो ना कभी


आज जज़्बातो की,बारिश सी हो रही देखो

जी भर के भीग लो,फ़िर ये मौसम मिले ना कभी


तुम तो कल चले जाओगे,अपने अपने घर देखो

मौज़ के दीवानों को,फ़िर शायद पहचानों ना कभी


दिल की धड़कने ना लेंगी,किसी का नाम कभी

तुम पुकारो मेरा नाम अभिमन्यु,कभी ना कभी


Sunday, March 20, 2011

होली का हुड्दंग !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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ब्रज की होली खेल, हुआ हाल बेहाल ।
गुल्फ़ाम जी हो गये, नीचे से ऊपर लाल ॥

बीच भवर में घिर गये, आगे कुआं पीछे खाई ।
चारों तरफ़ चक्रव्यूह, सी रचना पाई ॥

बच-बचाकर किसी तरह, भागे घर के अंदर ।
देख आईना चकराये, देखा जैसे बंदर ॥

बार – बार साबुन से, मुंह धोकर आते ।
फिर भी खुद को जैसे, पहचान न पाते ॥

तभी सामने से एक ब्रजबाला आ टकरायी ।
देख यूं हाल उनका, मंद मंद मुसकायी ॥

गुल्फ़ाम जी को प्यार के, रंगों से उसने नहलाया ।
लगा स्वर्ग जैसे, धरती पर उतर आया ॥

पडी चन्द्र्मा पर, अचानक काली छाय़ा ।
चन्द्रग्रहण थी श्रीमतीजी, डंडा नज़र आया ॥

हडबडाकर भागे, दरवाजे से जा टकराये ।
टूट गया था सपना, आह – आह चिल्लाये ॥

श्रीमतीजी भागकर, किचन से बाहर आयीं ।
माथा पकड्कर बैठ गयीं, रोयी और चिल्लायीं ॥

सपने में भी क्या, रंग रंग चिल्लाते हो ।
सोते – सोते घर का, पूरा चक्कर लगाते हो ॥

गुलफाम जी को मामला, कुछ समझ न आया ।
बोले "भाग्यवांन", आपने यह क्या फरमाया ॥

मैं तो सारे चक्कर - वक्कर, था तभी छोड़ आया ।
साथ तुम्हारे जब, सातवाँ चक्कर था लगाया ॥

Sunday, August 15, 2010

कविता - आजाद भारत बनो !

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तुम बहते जल की तरह बनो,
सन्मार्ग का पथ बतलाओ ॥
तुम हवा की तरह बहो,
शांति का दीप जलाओ ॥
तुम सूर्य की तरह चमको,
नवचेतना का प्रकाश फैलाओ ॥

तुम पुष्प की सुगन्ध बनो,
जग में विसरित हो जाओ ॥
तुम लहरों की तरह बहो,
किनारों को छूकर आओ ॥
तुम बादल की तरह गरजो,
ज्ञान की बूंदे बरसाओ ॥

तुम आजाद भारत बनो,
लोकतंत्र को मजबूत बनाओ ॥
तुम चंद्र्मा की तरह मुसकाओ,
शीतलता का पाठ पढाओ ॥
तुम अभिमन्यु की तरह बनो,
चक्र्व्यूह सभी आज तोड़ आओ ॥

Friday, July 2, 2010

हमारे अपने एन्डरसन : बिना खोजे मिलें हजार (भाग १)

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आज पूरा हिन्दुस्तान भोपाल गैस त्रासदी और एन्डरसन से संबन्धित खबरों से भरा पड़ा है । जगह जगह धरना, भोपाल गैस पीड़ितों के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं । अखबार और न्यूज चैनल खबरों से अटे पड़े हैं । इसी को लेकर मेरे मन में एक विचार आता है कि इस बात की समीक्षा जरूर की जाए कि विरोध किस बात पर ज्यादा है ?

एन्डरसन को आसानी से भारत से बाहर जाने देने के लिये..., या गैस पीड़ितों को मिले मामूली से मुआवजे के लिये......, या इसलिये कि 25 साल में इंसाफ़ नहीं हो पाया है......., या इसलिये कि अब तक किसी एक भी गुनहगार को सज़ा नहीं हुई है....., या इसलिये कि आगे भी शायद किसी को सजा हो न हो.....।

अगर हम २५ साल पीछे जाकर प्रष्टभूमि में झांके तो तब से अब तक हम भोपाल गैस पीड़ितों के नाम से शायद 25 हज़ार भारतीयों को खो चुके हैं । अनुमानित बाक़ी बचे पाँच लाख इंसान अभी भी अपनी जिंन्दगी से जूझते हुए किसी तरह बस बिना किसी उम्मीद में जिए जा रहे हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि अगर एन्डरसन को सजा मिल जाती तो क्या ....? अगर गैस पीड़ितों को २०-३० लाख मुआवजा मिल जाता तो क्या ........? १००-५० लोगों को सजा मिल जाती तो क्या ........ ? बाक़ी बचे पाँच लाख इंसानों को जिंदगी भर के लिये मुफ़्त इलाज मिल जाता तो क्या ...........?

तो क्या हम इस त्रासदी को भूल जाते...... ?

क्या यह त्रासदी, त्रासदी नहीं रहती ....?

शायद नहीं..... कभी नहीं । लेकिन क्यों ?????

क्रमश:……….

Monday, June 14, 2010

नज्म : सवाल क्या है

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इस तरह फासले रखने की, वजह क्या है।
हमसे यकीन उनका, अब शायद उठ गया है ॥

ये नजरें जो नजरें किसी से, चुरा रहीं हैं आज ।
लगता है कोई और, अब तुम को मिल गया है॥

तुझे तराश कर, उसकी कल्पना भी सोचती होंगी।
तेरे हुस्न को रंग, अब दिल का दिया है ॥

झुका तो चले थे वो, आसमां अपने कदमों में ।
सितारों ने पूछा है, अब उनका हाल क्या है॥

दूर जाना हो तो जाओ, किसी से पूछो नहीं।
अनगिनत जवाबों के बीच, अब यह सवाल क्या है॥