Sunday, May 18, 2014


!!!!!!!! कैसी यह बेबसी !!!!!!!!


देख कर तुमको न जाने क्यों, यह लगता है अक्सर

शायद कुछ कहना चाहती थीं, तुम मुझसे मिलकर


नयनों की यह भाषा मुझे, क्यों न सिखायी तुमने

शायद मैं तुम को समझ पाता, हर घडी हर पहर


ना तुम्हारा कुछ कहना, और ना मेरा कुछ सुनना

न पास आ सके हम, न बन सके कभी हमसफर


बस एक खुशबू के साथ, कब तक टिकता यह रिश्ता

जो छोड गयी मजधार मैं, हमसे कई बार मिलकर


किधर कैसे और कहां तलाश करूं, कितना तलाश करूं

हर तरफ बस वही खुशबू, आज जैसे तू हो गयी अमर

Saturday, April 26, 2014

कभी ना कभी...


कुछ तो है बात वरना, आप खफा नहीं होते कभी

हर आहट मिलने पर, दरवाजे पर न आ जाते कभी


बस एक नज़र ही का तो, कमाल है तुम्हारी देखो

हम कभी किसी और पर क्या,फिदा नहीं होते कभी


बस एक बार मिलने की खातिर,उनसे देखो

बार बार यों ही घर अपना,नहीं छोड़ते कभी


लेकर मुझको बाहों में,बार बार अपनी देखो

कोई खुद ही नहीं,शरमाता अपने आप कभी


पता है दोनों थे, वक़्त से मजबूर देखो

कोई क्यों वरना,न बिछड़ने की कसमें ख़ाता कभी


रोज़ देखता हूँ तुमको जी भर, एक नज़र देखो

बाद में तुम शायद,फ़िर दिखो ना कभी


आज जज़्बातो की,बारिश सी हो रही देखो

जी भर के भीग लो,फ़िर ये मौसम मिले ना कभी


तुम तो कल चले जाओगे,अपने अपने घर देखो

मौज़ के दीवानों को,फ़िर शायद पहचानों ना कभी


दिल की धड़कने ना लेंगी,किसी का नाम कभी

तुम पुकारो मेरा नाम अभिमन्यु,कभी ना कभी