Sunday, June 6, 2010

कविता : तुम कहो … बस एक बार…

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चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


चलते-चलते हर राह, हर मोड पर
कभी किसी ने कुछ कहा, कुछ पूछा ।
हर बात पर, जगह जगह टोका गया
कभी नाम, तो कभी बदनाम हुआ ।
जीता रहा, बस एक इस इच्छा से
काश, कभी तुम भी कुछ कहो ।
अधिकार से कभी, कुछ पूछो
कभी तो किसी बात पर, टोक दो ।
मुझ से कोई तो, सवाल करो
कभी तो, मुझसे जवाब मांगो ।
कभी मुझे, मेरे नाम से पुकारो
मौका दो, अपने जीवन में झाँकने का ।
धकेल दो वो, बरसों से बन्द दरवाजे
आ जाने दो मुझे अंदर, ताजी हवा के साथ ।
लग जाने दो मुझे, अपने सीने से
समां लेने दो मुझे, अपनी सांसों में ।
बस कह दो एक बार, पहली और आखिरी बार
तुम मेरे थे, तुम मेरे हो ।
उन शब्दों को हमसफ़र बना, सहारे से
हम करें इन्तजार अगले जन्म तक, जन्मों जन्मों तक ।

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  2. वाह्……………।बहुत सुन्दर्……………कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

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  3. कभी कभी इसी इंतज़ार में वक्त निकल जाता है...अच्छी रचना

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  4. धकेल दो वो, बरसों से बन्द दरवाजे
    आ जाने दो मुझे अंदर, ताजी हवा के साथ ।

    ..... बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ...एक बहुत ही सुन्दर अहसास के साथ रचना का अंत होता है... जो जाने कितने शुरुआतों को जन्म देता है...
    बधाई.

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